भारत में कई बड़े ऋषि-मुनि हुए हैं और उन्हीं में से एक महर्षि वेदव्यास जी है. जिन्हें वेदों का रचियता भी कहा जाता है.
धर्म ग्रंथों में अनुसार वेदव्यास जी के जन्म की कहानी बेहद ही रोचक थी और वह जन्म से ऋषि मुनि नहीं थे. बल्कि एक मछुआरन की कोक से उनका जन्म हुआ था.
पौराणिक कहानी के अनुसार एक बार महर्षि पराशर भ्रमण के लिए निकले थे और उनकी एक बेहद ही खूबसूरत स्त्री पर पड़ी, जिसका नाम सत्यवती था और एक मछुआरे की पुत्री थी.
सत्यवती दिखने में बहुत की आकर्षक थी और उसे देखकर ऋषि पराशर व्याकुल व विचलित हो उठे. फिर ऋषि ने उससे संबंध बनाने की बात कही.
सत्यवती ने कहा कि वह इस संबंध से संतान को जन्म नहीं दे सकती. लेकिन ऋषि पराशर ने यह बात मानने को तैयार नहीं थे.
इसलिए सत्यवती उनके समक्ष तीन शर्तें रखीं. पहली, संभोग क्रीडा के वक्त कोई न देखें. दूसरी, उसकी कौमार्यता भंग नहीं होनी चाहिए. तीसरी, शरीर से आने वाली मछली की दुर्गंध सुगंध में बदल जाए.
ऋषि पराशर ने सत्यवती की सभी शर्तें मान ली और तथास्तु कहा. इसके बाद उनके संबंध से जो पुत्र जन्मा उसका नाम कृष्ण वेदव्यास था. जो आगे चलकर वेदव्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए.
वेदव्यास जी ने चार वेदों, 18 महापुराणों और ब्रह्मसूत्र का प्रणयन किया. साथ ही महाभारत के भी रचियता वही थे.