मई और जून के बीच रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने चीन, उत्तर कोरिया और वियतनाम की ताबड़तोड़ यात्रा कर कई समझौतों पर दस्तख़त किए हैं.
पिछले दिनों वो भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मॉस्को में मिले. यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की इससे इतने खिन्न हुए कि उन्होंने इसे शांति प्रयासों के लिए एक बहुत बड़ा धक्का कह डाला.
वैसे रूसी नेताओं ने क़रीब एक दशक पहले व्लाडिवोस्टक में एशिया प्रशांत आर्थिक सहयोग की बैठक आयोजित कर सुदूर एशिया में बड़ी भूमिका निभाने की अपनी मंशा के बारे में संकेत देने शुरू कर दिए थे.
यूक्रेन पर हमला करने से पहले से ही रूस और चीन के बीच रक्षा सहयोग बढ़ने के संकेत मिलने लगे थे.
दोनों देश काफ़ी समय पहले से पूर्वोत्तर एशिया की सुरक्षा पर सलाह मशविरा करते रहे हैं और उन्होंने कई वायु और नौसैनिक युद्धभ्यासों में संयुक्त रूप से भाग लिया है.
अब तक रूस ने चीन के साथ अपने संबंधों का असर भारत पर नहीं पड़ने दिया है लेकिन चीनी मामलों की विशेषज्ञ मर्सी कुओ ‘द डिप्लोमैट’ पत्रिका में लिखती हैं, “जैसे-जैसे भविष्य में रूस की चीन पर आर्थिक निर्भरता बढ़ती जाएगी, इस समीकरण में बदलाव की संभावनाएं भी बढ़ती चली जाएँगी.”
कम्युनिस्ट आंदोलन के शुरुआती दिनों से सोवियत संघ और चीन काफ़ी करीब रहे लेकिन उनके आपसी संबंध छठे दशक की शुरुआत से बिगड़ने शुरू हो गए.
1970 के दशक में ये संबंध अपने सबसे ख़राब दौर में पहुंच गए थे लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका के एकाधिकार को कम करने के लिए दोनों देश फिर से एक दूसरे के निकट आते चले गए.